Thursday, March 06, 2008

ख़ुद से जम के मारो ठट्ठा
तन्हाई से आज झगड़

रात के संग यूँ मौज लड़ा
दिन का चेहरा कुछ जाए उतर

सन्नाटा इतना छलनी हो
खून गिरे बस तितर बितर

अंधियारे को डाँट पिला
लौ की कर तू पकड़ धकड़

ले थाम कुदाली, ज़ोर चला
डर की खुद जाए आज कब्र

कोने में पड़ा वह झाड़ू पकड़
झालें ये हटें, कस ले ये कमर

अरे फाड़ गला, एक चीख़ जगा
घर की मकड़ी का डोले जिगर