आज कुछ तन्हा हूँ
सहम कर रहता हूँ, देख कर चलता हूँ
दिन बहुत बीते यहाँ, पर ये शहर अब भी काटता है
चुपचाप बैठा हूँ, आसमान ताकता हूँ
दोस्त गिने बहुत हैं, पर कब कोई कुछ बाँटता है
सबसे मिल लेता हूँ, पर दूर सा रहता हूँ
दिखता नहीं कोई पास, मन ख़ाक छानता है
कोने में पड़ा हूँ, भीड़ से भागता हूँ
खुद को ढूँढा नहीं, क्यों औरों को मापता है
डर सा गया हूँ, कुछ मंत्र जापता हूँ
चेहरों के रंग बदले हैं, और ये तन काँपता है.
No comments:
Post a Comment